Lekhika Ranchi

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रंगभूमि--मुंशी प्रेमचंद




रंगभूमि अध्याय 10

बालकों पर प्रेम की भाँति द्वेष का असर भी अधिक होता है। जबसे मिठुआ और घीसू को मालूम हुआ था कि ताहिर अली हमारा मैदान जबरदस्ती ले रहे हैं, तब से दोनों उन्हें अपना दुश्मन समझते थे। चतारी के राजा साहब और सूरदास में जो बातें हुई थीं, उनकी उन दोनों को खबर न थी। सूरदास को स्वयं शंका थी कि यद्यपि राजा साहब ने आश्वासन दिया, पर शीघ्र ही यह समस्या फिर उपस्थित होगी। जॉन सेवक साहब इतनी आसानी से गला छोड़नेवाले नहीं हैं। बजरंगी, नायकराम आदि भी इसी प्रकार की बातें करते रहते थे। मिठुआ और घीसू इन बातों को बड़े प्रेम से सुनते, और उनकी द्वेषाग्नि और भी प्रचंड होती थी। घीसू जब भैंसे लेकर मैदान जाता तो जोर-जोर से पुकारता-देखें, कौन हमारी जमीन लेता है, उठाकर ऐसा पटकूँ कि वह भी याद करे। दोनों टाँगें तोड़ दूँगा। कुछ खेल समझ लिया है! वह जरा था भी कड़े दम, कुश्ती लड़ता था। बजरंगी खुद भी जवानी में अच्छा पहलवान था। घीसू को वह शहर के पहलवानों की नाक बना देना चाहता था, जिससे पंजाबी पहलवानों को भी ताल ठोकने की हिम्मत न पड़े, दूर-दूर जाकर दंगल मारे, लोग कहें-'यह बजरंगी का बेटा है।' अभी से घीसू को अखाड़े भेजता था। घीसू अपने घमंड में समझता था कि मुझे जो पेच मालूम हैं, उनसे जिसे चाहूँ, गिरा दूँ। मिठुआ कुश्ती तो न लड़ता था; पर कभी-कभी अखाड़े की तरफ जा बैठता था। उसे अपनी पहलवानी की डींग मारने के लिए इतना काफी थी। दोनों जब ताहिर अली को कहीं देखते, तो सुना-सुनाकर कहते-दुश्मन जाता है, उसका मुँह काला। मिठुआ कहता-जै शंकर, काँटा लगे न कंकर, दुश्मन को तंग कर। घीसू कहता-बम भोला, बैरी के पेट में गोला, उससे कुछ न जाए बोला।

ताहिर अली इन छोकरों की छिछोरी बातें सुनते और अनसुनी कर जाते। लड़कों के मुँह क्या लगें। सोचते-कहीं ये सब गालियाँ दे बैठें, तो इनका क्या बना लूँगा। वे दोनों समझते, डर के मारे नहीं बोलते, और शेर हो जाते। घीसू मिठुआ पर उन पेचों का अभ्यास करता, जिनसे वह ताहिर अली को पटकेगा। पहले यह हाथ पकड़ा; फिर अपनी तरफ खींचा; तब वह हाथ गर्दन में डाल दिया और अडंग़ी लगाई, बस चित। मिठुआ फौरन गिर पड़ता था, और उसे इस पेच के अद्भुत प्रभाव का विश्वास हो जाता था।

एक दिन दोनों ने सलाह की-चलकर मियाँजी के लड़कों की खबर लेनी चाहिए। मैदान में जाकर जाहिर और जाबिर को खेलने के लिए बुलाया, और खूब चपतें लगाईं। जाबिर छोटा था, उसे मिठुआ ने दाबा। जाहिर और घीसू का जोड़ था; लेकिन घीसू अखाड़ा देखे हुए था, कुछ दाँव-पेच जानता ही था, आन-की-आन में जाहिर को दबा बैठा। मिठुआ ने जाबिर के चुटकियाँ काटनी शुरू कीं। बेचारा रोने लगा। घीसू ने जाहिर को कई घिस्से दिए, वह भी चौंधिया गया; जब देखा कि यह तो मार ही डालेगा, तो उसने फरियाद मचाई। इन दोनों का रोना सुनकर नन्हा-सा साबिर एक पतली-सी टहनी लिए, अकड़ता हुआ पीड़ितों की सहायता करने आया, और घीसू को टहनी से मारने लगा। जब इस शस्त्र-प्रहार का घीसू पर कुछ असर न हुआ, तो उसने इससे ज्यादा चोट करनेवाला बाण निकाला-घीसू पर थूकने लगा। घीसू ने जाहिर को छोड़ दिया, और साबिर के दो-तीन तमाचे लगाए। जाहिर मौका पाकर फिर उठा, और अबकी ज्यादा सावधान होकर घीसू से चिमट गया। दोनों में मल्ल-युध्द होने लगा। आखिर घीसू ने सावधान उसे फिर पटका और मुश्कें चढ़ा दीं। जाहिर को अब रोने के सिवा कोई उपाय न सूझा, जो निर्बलों का अंतिम आधार है। तीनों की आर्तधवनि माहिर अली के कान में पहुँची। वह इस समय स्कूल जाने को तैयार थे। तुरंत किताबें पटक दीं और मैदान की तरफ दौड़े। देखा, तो जाबिर और जाहिर नीचे पड़े हाय-हाय कर रहे हैं और साबिर अलग बिलबिला रहा है! कुलीनता का रक्त खौल उठा; मैं सैयद पुलिस के अफसर का बेटा, चुंगी के मुहर्रिर का भाई, अंगरेजी के आठवें दरजे का विद्यार्थी! यह मूर्ख, उजड्ड अहीर का लौंडा, इसकी इतनी मजाल कि मेरे भाइयों को नीचा दिखाए! घीसू के एक ठोकर लगाई और मिठुआ के कई तमाचे। मिठुआ तो रोने लगा; किंतु घीसू चिमड़ा था। जाहिर को छोड़कर उठा, हौसले बढ़े हुए थे, दो मोरचे जीत चुका था, ताल ठोककर माहिर अली से भी लिपट गया। माहिर का सफेद पाजामा मैला हो गया, आज ही जूते में रोगन लगाया था, उस पर गर्द पड़ गई; सँवारे हुए बाल बिखर गए, क्रोधोंन्‍मत्ता होकर घीसू को इतनी जोर से धक्का दिया कि वह दो कदम पर जा गिरा। साबिर, जाहिर, जाबिर, सब हँसने लगे। लड़कों की चोट प्रतिकार के साथ ही गायब हो जाती है। घीसू इनको हँसते देखकर और भी झुँझलाया; फिर उठा और माहिर अली से लिपट गया। माहिर ने उसका टेंटुआ पकड़ा और जोर से दबाने लगे। घीसू समझा, अब मरा, यह बिना मारे न छोड़ेगा। मरता क्या न करता, माहिर के हाथ में दाँत जमा दिए; तीन दाँत गड़ गए, खून बहने लगा। माहिर चिल्ला उठे, उसका गला छोड़कर अपना हाथ छुड़ाने का यत्न करने लगे; मगर घीसू किसी भाँति न छोड़ता था। खून बहते देखकर तीनों भाइयोें ने फिर रोना शुरू किया। जैनब और रकिया यह हंगामा सुनकर दरवाजे पर आ गईं। देखा तो समरभूमि रक्त से प्लावित हो रही है, गालियाँ देती हुई ताहिर अली के पास आईं। जैनब ने तिरस्कार भाव से कहा-तुम यहाँ बैठे खालें नोच रहे हो, कुछ दीन-दुनिया की भी खबर है! वहाँ वह अहीर का लौंडा हमारे लड़कों का खून-खच्चर किए डालता है। मुए को पकड़ पाती, तो खून ही चूस लेती।

रकिया-मुआ आदमी है कि देव-बच्चा है! माहिर के हाथ में इतनी जोर से दाँत काटा है कि खून के फौवारे निकल रहे हैं। कोई दूसरा मर्द होता, तो इसी बात पर मुए को जीता गाड़ देता।
जैनब-कोई अपना होता, तो इस वक्त मूड़ीकाटे को कच्चा ही चबा जाता।

ताहिर अली घबराकर मैदान की ओर दौड़े। माहिर के कपड़े खून से तर देखे, तो जामे से बाहर हो गए। घीसू के दोनों कान पकड़कर जोर से हिलाए और तमाचे-पर-तमाचे लगाने शुरू किए। मिठुआ ने देखा, अब पिटने की बारी आई; मैदान हमारे हाथ से गया, गालियाँ देता हुआ भागा। इधर घीसू ने भी गालियाँ देनी शुरू कीं। शहर के लौंडे गाली की कला में सिध्दहस्त होते हैं। घीसू नई-नई अछूती गालियाँ दे रहा था और ताहिर अली गालियों का जवाब तमाचों से दे रहे थे। मिठुआ ने जाकर इस संग्राम की सूचना बजरंगी को दी-सब लोग मिलकर घीसू को मार रहे हैं, उसके मुँह से लहू निकल रहा है। वह भैंसें चरा रहा था, बस तीनों लड़के आकर भैसों को भगाने लगे। घीसू ने मना किया, तो सबों ने मिलकर मारा, और बड़े मियाँ भी निकलकर मार रहे हैं। बजरंगी यह खबर सुनते ही आग हो गया। उसने ताहिर अली की माताओं को 50 रुपये दिए थे और उस जमीन को अपनी समझे बैठा था। लाठी उठाई और दौड़ा। देखा, तो ताहिर अली घीसू के हाथ-पाँव बँधवा रहे हैं। पागल हो गया, बोला-बस, मुंशीजी, भला चाहते हो, तो हट जाओ; नहीं तो सारी सेखी भुला दूँगा, यहाँ जेहल का डर नहीं है, साल-दो-साल वहीं काट आऊँगा, लेकिन तुम्हें किसी काम का न रखूँगा। जमीन तुम्हारे बाप की नहीं है। इसीलिए तुम्हें 50 रुपये दिए हैं। क्या वे हराम के रुपये थे? बस, हट ही जाओ, नहीं तो कच्चा चबा जाऊँगा; मेरा नाम बजरंगी है!


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